सावन में कढ़ी खाना शुभ है या अशुभ? जानिए इसके पीछे की मान्यताएं

सावन में कढ़ी क्यों नहीं खाई जाती? जानिए धार्मिक और आयुर्वेदिक वजहें

सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और व्रत-उपवास का खास समय माना जाता है। इस पवित्र महीने में कई लोग सात्विक भोजन करते हैं और कुछ खास चीज़ों से परहेज़ रखते हैं। इन्हीं में से एक है — कढ़ी।

लेकिन सवाल ये है कि सावन में कढ़ी क्यों नहीं खाई जाती?
चलिए जानते हैं इसके पीछे के धार्मिक, स्वास्थ्य और परंपरागत कारण।

🙏 1. धार्मिक कारण (Religious Belief)

सावन में अधिकतर लोग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं और सात्विक भोजन करते हैं।
कढ़ी में दही और बेसन होता है — और दही को एक फरमेंटेड (खमीर उठा हुआ) पदार्थ माना जाता है।
व्रत और पूजा के दौरान ऐसे खमीर वाले खाद्य पदार्थों को अशुद्ध माना जाता है, इसलिए लोग कढ़ी से परहेज़ करते हैं।

🌿 2. आयुर्वेदिक कारण (Health & Digestion)

सावन का मौसम यानी मानसून का समय — इस दौरान वातावरण में नमी और बैक्टीरिया ज़्यादा होते हैं।
इस समय पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है।
कढ़ी, जो कि दही और बेसन से बनी होती है, पेट में गैस, एसिडिटी और अपच जैसी समस्याएं बढ़ा सकती है।
इसीलिए आयुर्वेद में भी मानसून में कढ़ी और दही जैसी चीज़ें कम खाने की सलाह दी जाती है।

🌾 3. पारंपरिक मान्यताएं (Cultural Traditions)

भारत में कई चीजें परंपरा और लोक-विश्वास से जुड़ी होती हैं।
सदियों से लोगों ने देखा कि सावन में कढ़ी खाने से शरीर पर असर पड़ता है, तो धीरे-धीरे यह परंपरा बन गई कि “सावन में कढ़ी नहीं खाते”।

✔️ निष्कर्ष (Conclusion)

सावन में कढ़ी न खाने के पीछे एक नहीं, बल्कि धार्मिक, आयुर्वेदिक और सांस्कृतिक कारण हैं।
अगर आप इस महीने व्रत रख रहे हैं या आपका पाचन कमजोर है, तो कढ़ी से परहेज़ करना अच्छा हो सकता है।

लेकिन अगर आपको कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं है और आप व्रत नहीं रख रहे, तो सीमित मात्रा में हल्की कढ़ी खाई जा सकती है — बस संयम और समझदारी के साथ।

 

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